संत समागम कितने एकड़ में हो रहा है?

रात का वक्त था। अचानक बारिश जोरों से शुरू हुई। सुनसान रस्ते पर बसी एक छोटी सी कुटियां पर किसी ने दस्तक दी। अंदर से एक शख्स ने सहमे-सहमे दरवाजा खोला और पूंछा -“कौन है?”

पथिक ने कहा, “मैं रास्ते से गुजर रहा था और अचानक जोरों से बारिश शुरू हो गई। इस बे-मौसम बरसात से बचने के लिए, क्या मुझे आपकी कुटिया में थोड़ा सहारा मिल सकता है”?

अंदर से व्यक्ति ने सेवाभाव का उदाहरण देते हुए कहा – “बिल्कुल, आप अंदर आ जाइये, मेरी कुटिया इतनी बड़ी तो नही कि रात हम दोनों सो कर गुजार सकें, किन्तु हाँ, हम दोनों रात भर बैठ के अपने आप को बारिश से ज़रूर बचा सकते हैं “।

थोड़ी देर गुज़री और उसी दरवाजे पर पुनः किसी ने दस्तक दी । इस बार पथिक नया था, लेकिन कारण वही था। उसे भी बरसात से बचने के लिए कोई सहारा चाहिए था। इस बार कुटिया के व्यक्ति ने यही कहा- “बेशक आप अंदर आ जाइये, हालांकि मेरी कुटिया इतनी बड़ी नहीं कि हम तीनों बैठ कर रात गुजार सकें, किन्तु हम तीनों कुटिया के भीतर खड़े होकर अपने आप को भीगने से अवश्य बचा सकते हैं।”

यह उदाहरण ने सोचने पर मजबूर कर देता है कि अगर दिल में जगह है तो बाकी जगह अपने आप ही बन जाती है और सेवा के बाद मन में खुशी व दिल को सकून आना भी लाज़मी ही है। वैसे ही आंकड़ों की दृष्टि से समागम का क्षेत्रफल बेशक कई सैकड़ों एकड़ में गिना जा सकता है, लेकिन लाखों-लाखों  गुरसिखों के विशाल दिलों में ये, पहले से ही समाया हुआ है, उसका क्षेत्रफल कैसे नापा जा सकता है?

निरंकारी संत समागम में सेवाभाव और विशालता के अनूठे, जीते-जागते उदाहरण अनुभव करने को मिलते हैं। समागम के मैदानों की तो फिर भी कोई सीमा है, पर संतो-महात्माओं के दिल असीमित विशालता का प्रमाण हैं, कड़कती ठंड में भी इनका ह्रदय सिकुड़ता नहीं है। सर्व-समावेशक भाव के साथ, हर परिस्थिती में ये एक-दूजे को मजबूरी में नही अपितु सहर्ष अपना लेते हैं, प्रेम देते है, और अनेकों दिलों को जीतकर, भक्ति की मिसाल कायम करते हैं।

वैसे, समागम के मैदान कितने भी बड़े हो जाए, लेकिन महापुरषों के उत्साह के कारण कम पड़ ही जाते है लेकिन महापुरषों के दिल सद्गुरु की दी हुई शिक्षा की वजहसे समस्त मानवजाति को भी अपने अंदर बहुत प्रेम से समा लेते है, और इसीलिए यह समागम अविरत चलता जा रहा है…

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